Friday, August 12, 2011

हर रात कुछ कहती है


हर रात कुछ कहती है
जब चुप के चाँद बादलों से
आँख मिचोली करती है
जब चाँद चकोरी चोरी -चोरी
नए सपनो को बुनती है
शशि कब आएगी तारो से पुछा कराती है
बेरहम तारे भी बादलों की जड़ में छिप जाते है
क्या वो शरमाते है
पर दिल में मचाते सपने अक्सर
शोर मचाते है
क्योकि हर रात कुछ कहती है -------

सात रंग के सपनो वाली
हर धुन पर सजाने वाली
हर राग में बजने वाली
हर सितम को सहने वाली
दर्द के सेहरा में तपने वाली
मुस्कराकर दर्द को कहने वाली
सर पटकती शोर करती तन्हाई
मद्धम मद्धम चलती पुरवाई
ने है आश जगाई कि
हर रात कुछ कहती है !------------

हरित त्रिन कि नोकों पर
ओश कि बूंदें जब अलसाई
किसी कि याद में बैठी तन्हाई
जब आँखों में आंसू लाई
मुस्कराकर चाँद कहा
मुझको भी तू देख यहाँ
इस छणिक चाँदनी रात में भी
मेरा दर्द भी क्या कम भला
रोशनी कि उम्मीदों ने अक्सर
वक़्त कि साजिश से मुझे छला
सुबह हुई मेरा वक़्त गुजरा
अलसाई ओस कि बूंदों पर
जब सूर्य रश्मि बिखरा
रात कि खुमारी का मौषम उतरा
जाते जाते यही कहा
हर रात कुछ कहती है !---------------------

दुःख के बाद सुख , सुख के बाद दुःख
इनके बीच ही चलती जीवन धारा
पर ना जीवन कभी सुख दुःख से हारा
स्वप्न जाल को बुनने वाली
हर रात कुछ कहती है
जीवन जिसको सुनती है
एकांत और निशब्द चुपचाप
हर रात कुछ कहती है !----------------

यह कविता क्यों ? हर रात खुद मे एक नए रात कि कहानी लिखती है! जिंदगी एक रात है जिसमे ना जाने कितने ख्वाब है जो मिल गया अपना है जो छूट गया सपना है ! अरविन्द योगी

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